बिना किसान
हिंदी कविता
सरकार हो या राष्ट्र कोई
किसान बिना सब सुना है
जवान हो या कर्मो कोई
किसान का पुत्र ही होना है
सीधा साधा सा चरित्र वो, हक अपना लेना है
फिर सामने हो चाहे कोई, सरकारों को भी धो देना है।
ग्रामीण हो, या शहरी कोई
किसान का बलबुता है, बिना किसान कोई भी देश सुना है
मेहनत, ईमानदारी के स्तंभों को, कर्मों की लकीरों से चलना है
तरक्की के लिए किसान को साथ लेकर चलना है
बिन इनके यहाँ कोन सी कमाई, यही तो हैं सच्चे भाई
जमीन कोई नाम नही, जमीन एक जागीर कई
गहना है बेटी सा, बिना जमीन क्या करी उगाई
आत्मसम्मान की रक्षा को, नई पीढ़ी की रक्षा को
अपना हक है मेरे भाई,
किसान बिना हक खोना है
इज्जतदार, हकदार परिवार वो, पूरे राष्ट्र का सम्मान वो
किसान बिना क्या होना है
रीढ़ की हड्डी कहुँ, आत्मनिर्भता मैं, सादा पन कहु
या ज्यारा से फरिशता मैं
अपना हक तो बस लेना है
जवान मेरे, किसान मेरे, नेता हो या आम आदमी
किसान बिना सब सुना है
जमींदार बिना सब सुना है।
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