एक किसान 

हिंदी कविता  


लम्बा सा कद है थोड़ा, धोती कुर्ता पहने वो

सर पे एक पगड़ी है, मूंछो को देता ताँव वो

इक शेर सा जिगर है, रास्तों पे चलता वो

पिता, पुत्र, मामा, दादा, नाना, भाई न जाने कितने रिश्ते निभाता है मेहनत कर अपने खेतों में, मेहनत की कमाई खाता है कभी बाढ़ आई, कभी सूखा पड़ता है

बस उसकी उम्मीदों को गहरा सदमा लगता है

कड़ी मेहनत धूप में और रातों का जागना होता है

 बेटी के सर पर रख हाथ, उसको कुछ बनाना होता है

चार गांवों में इज्जत बड़ी होती है, अपनी मेहनत से अनाज उगाकर देश का पेट भरना होता है 

स्तंभ सा खड़ा रहता है वो, कुदरत के करिश्मो को सहता वो

संघर्ष बड़े है रास्तों पर, किस्मत से धोखा खाता वो

उस होसलों से चलना होता है, रास्तों पे निकलना होता है

चालाकी तो आती नही, सीधा साधा से फरिश्ता है

मुँह से थोड़ा कड़वा बोले, पर दिल मे सबको रखता है

आत्मसम्मान के खातिर वो, वर्षों से जीता आया है

जिद्द है कि जीना है खुद के बलबूते हौसलों से जीतता आया है

दृढ़ सा निष्चय कर, सादा सा जीवन जीता है

दूध दही को छोड़कर, सादा पानी पीता है

इज्जत एक गहना है, पगड़ी को बस पहना है

चलेगा खुद के हौसले से, दूसरों से मदद को क्या कहना है

भाई चारा रखता है जी, आप, कहके चलता है

वो भूर्जी सी आंखों में भी इक तेज लिए चलता है।