किसान कहे । हिंदी कविता

 Kisan Andolan

चार उलझे चेहरे, खड़े हुए हैं आज

बचाने अपनी मिट्टी को

खुद का हक लेने को, खुद की बचाने शहीदगी को

आत्महत्या कर काम चलना नही अब

हौसलों से ऊपर उठ आना है अब, अब खुद की लाज बचाने को, सरकारों को कर दिखाना है,

जो माटी मेरे पूर्वजों की, जो मेहनत इन्होंने दी है

मोल उसका लगने न देंगे, खून पसीने से कमाई की है

पानी, लाइट, रास्ते नही उन पर तो ध्यान देती नही सरकारें, 

फसलों की इन आमदनियों को अपने हिसाब से चलाती हैं

जमीन से घुलते किसान को, उन स्तंभों सी आवाज को, दिखा देना चाहती है

जिगरों में दम है अभी भी, उठ खड़े हम होंगे आज,

खुद का हक लेके रहेंगे, चाहे गिर जाए कोई गाज़

देश का पेट हम हैं पालें, चार गांव के हम हैं रखवाले

सरकारें कहती, बिन तुम्हारे, क्या हो नुकसान

अब हम भी कर दिखाएंगे, मतलबियों को ये बताएंगे

खून पसीने की कमाई, ऐसे तो न जाने देंगे खराब

जानने का हक हम भी रखते हैं, पानी से सीचें वो उजड़ता मंजर, कहने का हक हम भी रखते हैं

भलाई हमारी चाहते हो न, पहले बैठ जाओ समझ हमें 

अच्छा है अगर लिए हमारे, करके तो दिखाओ हमे

कर्जों को हम सहते आए, बेदर्द से मंजर सहते आए

उन लंबे लंबे रास्तों पे खुद का हल चलाते आए

सूखा-बाढ़ों जैसे हालात

मिल जुल कहे सभी किसान

जय जवान जय किसान 

किसान बचाओ मंडी बचाओ। 


धन्यवाद