किसान बिल के बारे में पूरी जानकारी  

जानिए क्या है किसान बिल 


पार्लियामेंट में खेती से सम्बंधित 3 बिल पास हुए है जिसका किसान और विरोधी दल बहुत तेजी से विरोध कर रहे है तो जानते है क्या है इन बिलों मे ये कैसे पास हुआ और किसान क्यो इनका विरोध कर रहे है तो बने रहे इस आर्टिकल मे आखरी तक।

सेंटर की बीजेपी सरकार ने इस बिल को किसानों की भलाई के लिए और उनके फायदे के लिए और देश में बदलाव लाने के लिए बनाया है। खेती इस देश का सबसे बड़ा व्यापार है देश के करीब 60 प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर है और देश की जी०डी०पी० मे 15 प्रतिशत तक खेती दान करती है। कोई भी सरकार किसानों के विरोध मे फैसला नहीं करेगी लेकिन फ़िर भी आज किसानों को सड़क पर आना पड़ रहा है । तो जानते है इस बिल के फायदे और नुकसान -

लेकिन उससे पहले ये जानना जरूरी है कि ये 3 बिल है क्या :- 

1.        पहले बिल के हिसाब से किसान अपनी    फसलों को देश के किसी भी राज्य में जाकर बेच सकता है बिना किसी टैक्स के साथ ही एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच कारोबार बढ़ाने की बात भी कही है इसके अलावा व्यापार और परिवहन पर भी कम ख़र्च करने की और आर्थिक मदद करने की भी बात कही गयी हैं। 

2.        दूसरे बिल में सरकार ने कृषि कामों पर राष्ट्रीय ढांचे का प्रावधान किया हैं। ये बिल कृषि प्रावधानों में बिक्री, फॉर्म सर्विस, कृषि बिज़नेस , फर्मो, होलसेलर, रिटेलर और एक्सपर्ट्स के साथ जुड़ने के लिए किसानों को मजबूत करता है संकुचित किसानो को अच्छे बीज देना , तकनीकी सहायता , कर्ज और फसल बीमा में सहूलियत देना ही इस बिल का उद्देश्य हैं।

3.         तीसरे बिल के हिसाब से अनाज, दालें, खाने वाला तेल , आलू प्याज और भी कई ज़रूरी चीजो को लिस्ट से हटाने का प्रावधान हैं। माना जा रहा है बिल के प्रावधान से किसानों को सही कीमत मिलेगी  क्योंकि इससे बाज़ारों में मुकाबला बढ़ेगा। 

तो देखने में ये बिल काफी सही लग रहे है ओर किसानों के हित में है तो फिर किसान विरोध क्यों कर रहे हैं अब ये जानते हैं।

लेकिन उससे पहले ये जान लेते है कि ये बिल शुरू कहा से हुआ संसद में 20 सितंबर को ये बिल लाया गया था तब विरोधी दल इसका काफी विरोध कर रहे थे । (voice vote) के जरिये ये बिल पास किया गया था।(voice vote) क्या होता है की सभी लोग 

1 सेकंड में बोलकर अपना वोट देते है और ये अध्यक्ष पे  निर्भर करता है की किसकी आवाज़ ज्यादा आ रही है उसके पक्ष मे फैसला सुनाया जाता है तो 90 और 10 प्रतिशत वाले केस में ये काम करता है लेकिन अगर 40 और 60 प्रतिशत का केस हो तो इसका पता नही चलता इस लिए इसका नियम ये भी है की अगर कोई भी इस फैसले से संतुष्ट ना हो तो division voting की जाती है  जिसमे नेताओं के सामने डेस्क पर ही हाँ या ना का बटन होता है और उसके जरिऐ voting होती है  ये केस भी 40 और 60 प्रतिशत वाला था इस पर काफी सारे MPs ने विरोध जताया लेकिन अध्यक्ष हरिवंश जी ने ये कह के टाल दिया कि जब सभी लोग सीट पर बैठेंगे तभी division voting होगी और फिर MPs धरने पर आ गए।  इस बरताव की वजह से कई MPs को बर्खास्त भी कर दिया गया और काफी कम लोगो में voice vote के जरिये इस बिल को और इनके अलावा और भी बिलों को पास किया गया। 

सरकार चाहती थी कि ये बिल आये इसीलिए उन्होंने विरोधियो की सुने बिना इस बिल को पास कर दिया। ये विरोधी दल ही सबसे पहले धरने पर बैठे थे और किसानों को धरने पर लाने के लिए ईंधन का काम किया।

अब बात करते है इस बिल के नुकसान के बारे मे जो किसान सोच रहे हैं और जो विरोधी दल तेजी से फैला रहे है :- 

           किसानों को ये डर है कि उन्हें MSP यानी minimum support price नही मिला करेगा और APMC यानी मंडी सिस्टम भी खत्म हो जाएगा हालांकि सरकार ने ये दावा किया है कि इस बिल से MSP या APMC कोई फर्क नही पड़ेगा वो सिस्टम पहले की तरह ही रहेगा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किसानों को बार बार ये यकीन दिलाने की कोशिश कर रहे है कि ये बिल उनके फ़ायफे के लिए है।

अब ये जान लेते है कि APMC क्या होता है APMC  यानी agriculture produce market companies . इसे 1939 में हरियाणा के किसानों के एक बड़े अध्यक्ष छोटू राम ने पास करवाया था। बाद में इसे सभी राज्यों में लागू कर दिया गया था। आमतौर पर ये एक मंडी सिस्टम है जिसमे किसान अपनी फसल ला कर बेच सकते है मंडी के रेट के हिसाब से यहां बिचोलिये या आढ़तिये होते है जो इन फसलों को खरीद कर सरकार या बड़ी कंपनी में बेच सकते है। सरकार ने इन बिलों के जरिये इस सिस्टम से बढ़कर ये नियम निकला है की किसान सीधे अपनी फसल सरकार या बड़ी कंपनी में बेच सकता है। इसका मतलब ये है कि इन बीच के बिचोलियों को खत्म कर दिया गया है। इसमें बिचोलियों का आयोग बचकर किसान को ज्यादा फायदा मिल पाएगा। लेकिन किसान इस बात से नाराज़ है कि अगर APMC नही रहेगी तो बड़ी-बड़ी कंपनियां बड़े-बड़े किसानो से अनाज ले लेगी। ऐसे मे छोटे किसानों का क्या होगा जिनके पास थोड़ी जमीन और थोड़ी फसले होती है दूसरी बात ये भी है की किसानों को ये लगता है की अगर इन कंपनियों ने 1 साल में 1 दाम में काफी सारा राशन लेकर जमा कर लिया है तो अगली बार इनको इनकी फसलो का उतना दाम नही मिल पाएगा इन्हें मजबूरन अपनी फसले सस्ते दामो पर बेचनी पड़ेंगी तो इन सब बातों से किसान नाराज़ है। हालाँकि सरकार का कहना है कि APMC ऐसी ही रहेगी। लेकिन किसान ये समझते है कि अगर की कंपनिया फसल का महँगा  दाम देंगी तो लोग कंपनियों को फसल बेच देंगे और APMC तो वैसे ही खत्म हो जाएगी जब इनके पास अनाज ही नही होगा लेकिन अगले साल अगर कंपनियों को अनाज की जरूरत न हुई तो किसानों को सस्ते दामों पर फसल बेचनी पड़ेगी। पहले ये सिर्फ बिल था लेकिन अब राष्ट्रपति के दस्तखत होने के बाद कानून बन गया है। इसी वजह से किसान इसका विरोध कर रहे है। और पंजाब के शिरोमणि अकाली दल ने NDA से नाता तोड़ दिया यानी उनके नेता हरसिमरत सिंह ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और सेंट्रल सरकार का भी यही कहना है की ये बिल किसानो के फायदे के लिए है। बाकी आपने देखा है किस तरह से इस बिल को पास किया गया और किसानों की मांगों को नजरंदाज किया गया।