हद दरिंदगी की 

हिंदी कविता 


 गुनाह तो पता नही मुझे उस मासूम दिल का

पर सजा बड़ी बेरहम सी थी

किस कदर नोचा था जिस्म दरिंदो ने उसका

दिल भी बैठ जाए सुनकर भी

कैसी वो दरिंदगी होगी, कैसी वो करुणा, कैसी वो मानसिकता होगी, कैसी हवस है

मासूम से उस चेहरे को, क्या ख्याल रहा होगा

वो आज जिंदा है तो कल उसके संग क्या होगा

वो निकली होगी मुस्कान ले, घर से रोज़ की तरह 

नए अरमान लेकर रोज़ की तरह

हिम्मत तो थी कुछ कर गुजरने की खुद के दम पे है

पर जब वो हिम्मत टूटी होगी, क्या मंजर होगा ना

खुदा को भी भूल बैठे थे जालिम जो, इस कदर हवस में  बैठे जो दरिंदे वो 

मन कैसे माना होगा, मासूम के चेहरे नोचते हुए

सोचा भी कैसे होगा खुद की बहन-सी जिंदगी से खेलते हुए

वो चीखी होगी, चिल्लाई होगी, खुद की बचाने को आवाजें लगाई होंगी

हिम्मत तो थी, वो ताकत भी, बचाने को खुद को पूरी ताकत लगाई होगी

वो मंजर भी क्या होगा, जब टूटी होगी वो

वो मंजर भी क्या होगा, जब हिम्मत से मजबूर रूठी होगी वो

आंसू बहते होंगे पल-पल आखों से,

पर दम नही था, उसमे उन बेरहम को पिघलाने का

उस जिस्म में दम ही कहाँ बचा था अब, कुछ दरिंदों को सजा दिलाने का

रूठी सी वो इंसानियत से छोड़ गई सारे रिश्ते है

अब दुनिया से ही चली गई, वो टूटी सी वो आस थी😢😢😢